दोस्तों, आज की इस पोस्ट में हम ट्राई स्क्वायर के बारे में जानेंगे। इसका ट्रेड फिटर में क्या महत्व होता है। इसको वर्कशॉप में जॉब बनाते समय क्यों उपयोग में लाया जाता है। ऐसे ही बहुत से सवालों का जवाब देने के कोशिश की है।
ट्राई स्क्वायर किसे कहते हैं? | Try Square kise kahate hain?
यह एक प्रकार का चेकिंग टूल (Checking Tool) होता है, इस टूल की सहायता से हम जॉब की दो सतहों पर समकोण की जांच कर सकते हैं। इसके अलावा ट्राई स्क्वायर द्वारा सतह/सर्फेस की समतलता को भी चेक किया जाता है। यह दो भागों से मिलकर बना होता है। जिसमें से एक भाग का नाम स्टॉक व दूसरे भाग का नाम ब्लेड होता है। इन दोनों भागों को 90° के कोण पर सेट किया जाता है।
स्टॉक ढलवा लोहा अथवा माइल्ड स्टील का बना होता है और ब्लेड हाई कार्बन स्टील का बना होता है।
इसका ब्लेड 10 सेमी से 30 सेमी लम्बा होता है। ब्लेड पर मिमी, सेमी अथवा इंचों में निशान अंकित होते हैं। कुछ ट्राई स्क्वायर के ब्लेड प्लेन भी होते हैं, जिन पर किसी भी प्रकार का चिन्ह अंकित नहीं होता है। ट्राई स्क्वायर के 10 सेमी लम्बे स्टॉक में 15 सेमी लम्बा ब्लेड लगाया जाता है।
ट्राई स्क्वायर कितने प्रकार का होता है?
यह दो प्रकार के होते हैं, जो कि निम्न प्रकार से हैं-
- साधारण ट्राई स्क्वायर
- मास्टर ट्राई स्क्वायर
साधारण ट्राई स्क्वायर किसे कहते हैं?
ऐसे ट्राई स्क्वायर जिनका उपयोग आमतौर पर कारपेंटर शॉप में किया जाता है, जहां पर कोण को देखने के लिए अधिक सूक्ष्मता की आवश्यकता नहीं होती है, उनको साधारण ट्राई स्क्वायर कहते हैं। इनका बेस कास्ट आयरन व ब्लेड स्टील का बना होता है।
मास्टर ट्राई स्क्वायर किसे कहते हैं?
इस ट्राई स्क्वायर की एक्युरेसी साधारण ट्राई स्क्वायर से अधिक होती है। इसका उपयोग ऐसी मशीन शॉप में किया जाता है, कि जहां पर अधिक सूक्ष्मता में मशीनों के भाग बनाए जाते हैं। इसका बेस व ब्लेड दोनों अच्छी तरह से ग्राइण्ड (Grind) करके हाई कार्बन स्टील (High Carbon Steel) से बनाए जाते हैं। यह छः प्रकार के होते हैं, जो कि निम्न प्रकार से हैं-
- फिक्स्ड ट्राई स्क्वायर
- एडजस्टेबल ट्राई स्क्वायर
- डाई मेकर ट्राई स्क्वायर
- 'L' स्क्वायर
- सिलेण्डर स्क्वायर
- इंजीनियर्स स्क्वायर
फिक्स्ड ट्राई स्क्वायर किसे कहते हैं?
इस प्रकार के स्क्वायर का बेस व ब्लेड दोनों एक ही धातु के बनाए जाते हैं, इनको रिवेट करने की जरुरत नहीं पड़ती है और न ही ब्लेड को आगे-पीछे सरकाया जाता है। इसको सॉलिड ट्राई स्क्वायर भी कहते हैं। इसी में एक अलग रूप के अन्तर्गत ब्लेड को रिवेट करके तैयार किया जाता है, जिसमें बेस व ब्लेड की धातु अलग-अलग होती है, इसको बैक स्क्वायर टाइप कहते हैं। इसमें ब्लेड को सीधे स्टॉक के साथ जोड़ा नहीं जाता है, बल्कि इसके स्टॉक के ऊपरी सिरे पर एक ग्रूव कटा होता है, जिसमें एक पिन फिट होती है और इस पिन को एक नर्ल किए हुए नट के द्वारा एडजस्ट किया जाता है।
एडजस्टेबल ट्राई स्क्वायर किसे कहते हैं?
ब्लेड के बीच में पूरी लंबाई तक आयताकार आकार की नली में फंस जाता है और जब नट को घुमाया जाता है। इस नट को घुमाने पर नट ब्लेड को स्टॉक के साथ ही कस देता है। इस प्रकार के ट्राई स्क्वायर में स्टॉक के दोनों ओर बने कोण समकोण होते हैं। इसका उपयोग ऐसे स्थान पर किया जाता है, जहां पर फिक्स्ड ट्राई स्क्वायर का उपयोग नहीं किया जा सकता है। इसके ब्लेड को कहीं भी सेट कर सकते हैं।
डाई मेकर ट्राई स्क्वायर किसे कहते हैं?
इसके भाग स्टॉक में नीचे की तरफ दो स्क्रू लगे होते हैं, जिसमें से बड़ा स्क्रू ब्लेड को स्टॉक के साथ क्लैम्प करने के लिए लगा होता है और छोटा स्क्रू ब्लेड व स्टॉक के बीच बनने वाले कोण को समकोण से कुछ अधिक अथवा कम कोण पर एडजस्ट करने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग डाई व पंच बनाने में किया जाता है और इसके अलावा इसकी उपयोगिता डाइयों में अनेकों प्रकार के अवकाश कोण देने के लिए होती है। इसके सैट में चार ब्लेड होते हैं, जो कि निम्न प्रकार से हैं-
- स्टैण्डर्ड ब्लेड - इसको हिंदी भाषा में मानक ब्लेड कहते हैं। यह लगभग 12 मिमी चौड़ा व 65 मिमी लम्बा होता है। यह इसी आकार में मीट्रिक व ब्रिटिश दोनों पद्धतियों में पाए जाते हैं।
- बेवेल ब्लेड - इस प्रकार के ब्लेड का उपयोग डाई मेकर द्वारा किया जाता है। यह 12 मिमी चौड़ा होता है, इसके दो किनारे बेवल होते हैं। जिसका एक सिरा 45° व दूसरा 30° पर कटा होता है।
- नैरो ब्लेड - इसको हिंदी भाषा में संकीर्ण ब्लेड कहते हैं, इसकी चौड़ाई 4 मिमी व लंबाई 60 मिमी होती है। इसके एक सिरे को लगभग 16 मिमी लंबाई में मात्र 2.4 मिमी चौड़ाई का बनाया जाता है।
- ऑफसैट ब्लेड - इस ब्लेड के दोनों सिरे बेवेल होता है और इसकी चौड़ाई लगभग 3 मिमी होती है।
'L' स्क्वायर किसे कहते हैं?
यह लगभग आधा सूत या 1.5 मिमी मोटी माइल्ड स्टील की पत्ती का बना होता है। इसकी चौड़ाई 30 से 50 मिमी होती है और इसकी लंबाई 150 मिमी से 200 मिमी तक होती है। इसकी दोनों भुजाओं पर मीट्रिक व ब्रिटिश पद्धति में चिन्हन अंकित होते हैं। इसका उपयोग अधिकतर दर्जी, बढ़ई व राजमिस्त्री आदि के द्वारा किया जाता है।
सिलेण्डर स्क्वायर किसे कहते हैं?
यह कठोर की गई डाई स्टील अथवा केस हार्ड की गई माइल्ड स्टील के बनाए जाते हैं। यह साधारणतया बहुत कम मिलते हैं। इनकी सिलेण्डर, सतह व फेस 90° पर ग्राइण्ड किए जाते हैं। इसका उपयोग निरीक्षण कार्य, मार्किंग प्लेट व सर्फेस प्लेट पर किया जाता है।
इंजीनियर्स स्क्वायर किसे कहते हैं?
इस प्रकार के स्क्वायर मुख्यत: 100 मिमी से 300 मिमी की रेंज में मिलते हैं, लेकिन यह 100 मिमी या 150 मिमी की रेंज वाले इंजीनियर स्क्वायर अधिक उपयोग किए जाते हैं। यह दो प्रकार के होते हैं, जिसमें से पहले प्रकार के इंजीनियर स्क्वायर को बनाने के लिए स्टील प्लेट का उपयोग किया जाता है और इसकी एज को ग्राइण्ड कर दिया जाता है। दूसरे प्रकार के इंजीनियर स्क्वायर के ब्लेड के स्टॉक को बनाया जाता है, इसमें ब्लेड व स्टॉक एक दूसरे से 90° पर रहते हैं। यह भारत मानक (ISI) के अनुसार निम्न प्रकार के होते हैं-
- बेवेल एज स्टॉक इंजीनियर स्क्वायर - इसका बाहरी किनारा स्टॉक में लगा होता है, जो कि बेवेल किया होता है। जिसके कारण इसकी केवल एक ही लाइन जॉब के सम्पर्क में आती है। इसका उपयोग परिशुद्ध (Accurate) कामों के लिए किया जाता है।
- फ्लेट एज तथा बिना स्टॉक इंजीनियर स्क्वायर - इस प्रकार के इंजीनियर स्क्वायर ब्लेड व स्टॉक दोनों एक ही पीस में बनाए जाते हैं।
- फ्लैंज सहित इंजीनियर स्क्वायर - इस प्रकार के स्क्वायर 500 मिमी से भी अधिक लंबाई में मिलते हैं और इनका उपयोग मार्किंग के लिए किया जाता है।