दोस्तों, आज की इस पोस्ट में हम स्टील (Steel) कैसे बनती है? और इसको बनाने के लिए कितने प्रकार के प्रोसेस उपयोग में लाए जाते हैं आदि के बारे में बात करने वाले हैं। यदि आप इस पोस्ट में दी गई जानकारी को पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
स्टील कैसे बनती है? | Steel kise banati hai?
दोस्तों, स्टील को बनाने के लिए मुख्यरूप से पांच विधियां उपयोग में लाई जाती हैं, जो कि निम्न प्रकार से हैं-
- बेसेमर प्रोसेस
- इलेक्ट्रिक प्रोसेस
- ओपनहर्थ प्रोसेस
- सीमेन्टेशन प्रोसेस
- एल. डी. प्रोसेस
बेसेमर प्रोसेस क्या है?
इस प्रोसेस में पिघले हुए कच्चे लोहे एक घड़े की आकृति के बर्तन में डालकर हवा (Air) को ब्लास्ट (blast) करते हैं। जब यह ब्लास्ट होता है तब हवा मिली हुई ऑक्सीजन कच्चे लोहे में मिश्रित कार्बन व अन्य अशुद्धियों को जला देती है।
इस ऑक्सीकरण से प्राप्त ऊष्मा (Heat) कच्चे लोहे (Pig Iron) का तापमान बनाए रखती है, जिससे उसे अलग से ऊष्मा देने की जरूरत नहीं पड़ती है। बेसेमर प्रोसेस को करने के लिए घड़े की आकृति के बर्तन उपयोग किया जाता है, उसको बेसेमर कन्वर्टर कहते हैं। बेसेमर कन्वर्टर में अशुद्धियां हटाने का काम निम्न तीन अवस्थाओं में होता है, जो कि निम्न प्रकार से है-
- प्रारम्भिक अवस्था- इस अवस्था में जब हवा को ब्लास्ट किया जाता है तब लोहा, ऑक्सीजन के साथ मिलकर फैरस ऑक्साइड बनाता है जो कि स्लैग के रूप में मिश्रित रहता है। मैंगनीज व सिलिकॉन की अशुद्धियां भी ऑक्साइड के रूप में स्लैग में मिल जाती हैं। इस ऑक्सीकरण के कारण तापमान 1250°C से 1525°C तक बढ़ जाता है। यह अवस्था 3 से 4 मिनट तक की होती है। इसके बाद का प्रोसेस दूसरी अवस्था में होता है।
- मध्यम अवस्था- इस अवस्था में लोहा में मिश्रित कार्बन का ऑक्सीकरण होता है इस तरह से बनी कार्बन मोनोऑक्साइड गैस कन्वर्टर के मुंह पर सफेद ज्वाला के रूप में जलने लगती है। यह अवस्था 8 से 12 मिनट की होती है और जब गैस जलना बन्द कर दे तब समझ लेना चाहिए कि लोहा में कार्बन नहीं रह गया है।
- फिनिशिंग या अन्तिम अवस्था- इस अवस्था में लोहा में मिली ऑक्सीजन निकालने के लिए व वांछित मात्रा में सिलिकॉन, मैंगनीज व कार्बन मिलाने के लिए डी-ऑक्सीडाइजर के रूप में फैरो मैंगनीज, फैरो सिलिकॉन या एल्युमीनियम को मिलाते हैं।
बेसेमर प्रोसेस की हानियां
- इसमें स्क्रैप स्टील (Scrap Steel) का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
- इस प्रोसेस से बनने वाली स्टील में ऑक्सीजन की मात्रा मिली रहती है।
इलेक्ट्रिक प्रोसेस क्या है?
इस प्रोसेस में कच्चे लोहे तथा स्क्रैप स्टील को पिघलाने के लिए कार्बन इलैक्ट्रॉड तथा स्क्रैप में बनी आर्क से आवश्यक ऊष्मा (Heat) प्राप्त करते हैं। स्टील उत्पादन (Steel Production) में दो प्रकार की भट्ठियां उपयोग की जाती हैं, जो कि निम्न प्रकार से हैं-
- विद्युत आर्क भट्ठी- इस भट्टी में धातु के कुण्ड व कार्बन इलैक्ट्रॉड के बीच उत्पन्न विद्युत आर्क द्वारा ऊष्मा प्राप्त की जाती है। इस भट्टी का मुख्य रूप से उपयोग हाई स्पीड स्टील (High Speed Steel) अथवा स्टेनलैस स्टील (Stainless Steel) को बनाने में किया जाता है, क्योंकि इस भट्टी में अलॉय तत्वों को आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है। इस भट्टी का तापमान 2000°C तक होता है, इसमें धातु को इसी ताप पर पिघलाया जाता है। जब धातु पिघल जाती है तब उस पर स्लैग तैरने लगता है तब भट्टी को तिरछा करके स्लैग उतार दिया जाता है। इसके बाद पिघली धातु को लैडल (Ladle) से निकालकर आवश्यकतानुसार अलॉयिंग तत्व (Alloying Elements) मिलाकर स्टील (Steel) प्राप्त की जाती है। इस भट्टी का उपयोग करके 2 से 180 टन तक स्टील प्राप्त की जा सकती है। इस भट्टी द्वारा स्टील तैयार होने में 5 घण्टे का समय लगता है।
- उच्च आवृत्ति भट्टी- इस प्रकार की भट्टी अग्निसह ईंटों द्वारा बनी होती है। इसके चारों ओर प्रत्यावर्ती धारा वाली प्रेरण कुण्डली लगी होती है। जिसके बाहरी छल्ले को विशेष चुम्बकीय लोहे से बनाया जाता है। यह छल्ला कुण्डली में चुम्बकीय सुरक्षा देता है। इसमें चार्ज के रूप में आयरन ऑक्साइड व स्क्रैप स्टील का उपयोग किया जाता है। स्टील को गलाने के बाद उसमें आवश्यक अलॉय तत्व मिलाए जाते हैं। इन तत्वों से स्टील पुनः साफ (Clean) हो जाती है। इस प्रोसेस से प्राप्त स्टील द्वारा कटिंग टूल, प्रेस टूल व सूक्ष्ममापी यन्त्र बनाए जाते हैं।
ओपनहर्थ प्रोसेस क्या है?
बेसेमर प्रोसेस की हानियों को इस प्रोसेस द्वारा दूर किया जाता है। इसी प्रोसेस से देश में स्टील (Steel) अधिकतर बनाई जाती है। इस प्रोसेस में प्रोड्यूसर गैस को फ्यूल के रूप में उपयोग किया जाता है, जिसे एक प्लाण्ट द्वारा उत्पन्न किया जाता है, जो कि दो जनरेटिंग चैम्बरों के बीच हर्थ पर फीड होता है। प्रोड्यूसर गैस व हवा को दो अलग-अलग चैम्बरों में गर्म करके चार्ज पर छोड़ा जाता है।
भट्टी में चार्ज डालकर उसे 1500°C तक गर्म किया जाता है। स्टील की क्वालिटी के अनुसार कच्चे लोहे व स्क्रैप स्टील का चार्ज बनाया जाता है। इस चार्ज में कच्चे लोहे व स्क्रैप स्टील का अनुपात 1 : 4 से 4 : 1 तक रखा जा सकता है, लेकिन इसके लिए उचित अनुपात 3 : 2 का होता है। जब चार्ज पिघलता है तब सिलिकॉन व मैंगनीज पूरी तरह व कार्बन आंशिक रूप में ऑक्सीडाइज होकर स्लैग में आ जाते हैं और अधिक तापमान बढ़ने पर कार्बन कम होता जाता है। अन्त में कार्बन की वांछित मात्रा रह जाने पर भट्टी से स्टील को बाहर निकाल लेते हैं। पिघली धातु बाहर लैडिल में निकालते समय उसमें ऑक्सीडाइजर मिला देते हैं, जिससे उसमें घुली ऑक्सीजन बाहर आ जाए।
सीमेन्टेशन प्रोसेस क्या है?
इस प्रोसेस में पिटवां लोहे में कार्बन मिलाकर स्टील का उत्पादन किया जाता है। इसमें सबसे पहले पिटवां लोहे की छड़ों को चारकोल के साथ 900°C पर गर्म किया जाता है, जिससे चारकोल में उपस्थित कार्बन पिटवां लोहे में प्रवेश कर जाता है। इस प्रोसेस को लम्बे समय तक करने के बाद पिघली धातु को ठण्डा करने पर जो स्टील मिलती है, उसे ब्लिस्टर स्टील (Blister Steel) कहते हैं।
अब इस ब्लिस्टर स्टील को रेत तथा सुहागा मिलाकर दोबारा गर्म किया जाता है। उसके बाद गर्म मिश्रण को ठण्डा करके इस पर फोर्जिंग प्रोसेस (Forging Process) की जाती है। इस प्रकार से जो स्टील मिलती है, उसे शियर स्टील (Shear Steel) कहते हैं। इस स्टील का उपयोग कर्तन औजार (Cutting Tools) बनाने में किया जाता है।
एल.डी. प्रोसेस क्या है?
इस प्रोसेस में उपयुक्त एल.डी. कन्वर्टर के द्वारा कम समय में अच्छी क्वालिटी की स्टील (Steel) बना सकते हैं। इसमें भी कच्चे माल के रूप में ब्लास्ट भट्टी से पिघला कच्चे लोहे व स्क्रैप स्टील लेते हैं। इसमें अशुद्धियों को दूर करने के लिए फ्लक्स (Flux) का उपयोग करते हैं। पिघले कच्चे लोहे व स्क्रैप की फ्लक्सिंग करने के बाद स्लैग को उतार लेते हैं।
इसके बाद एक पाइप (Pipe) को पिघली धातु के नजदीक लाते हैं। इस पाइप में से शुद्ध ऑक्सीजन का एक जैट उच्च दाब पर पिघली धातु की सतह पर छोड़ते हैं। इससे कार्बन सहित अन्य अशुद्धियां स्लैग के अंदर ऑक्साइड के रूप में आ जाती हैं। इसके बाद कन्वर्टर को झुकाकर स्लैग को अलग लैडिल में व धातु को अलग लैडिल में निकाल लेते हैं। स्टील (Steel) में वांछित गुणों के विकास के लिए आवश्यक अलॉय तत्व आवश्यकतानुसार लैडिल में मिला लिए जाते हैं।